Monday, March 26, 2018

मछली मछली कित्ता पानी
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कित्ता पानी कित्ता पानी।
मछली मछली कित्ता पानी।
नदी किनारे आकर बैठी,
पूछे मछुआरों की रानी।
मछली मछली कित्ता पानी।
झुंडों मे आ कहतीं मछली,
इत्ता पानी इत्ता पानी।
प्रतिवर्ष इस तरह आती जाती,
गाती मछुआरों की रानी।
झुंडों मे आ मछली कहतीं,
इत्ता पानी इत्ता पानी।
हाय हुआ क्या इस बारी,
कि आई मछुआरों की रानी।
पूछे बैठे नदी किनारे,
मछली  मछली कित्ता पानी।
कोई उत्तर नहीं मिला तो,
उसको हुई बड़ी हैरानी।
बार बार आवाज लगाये,
मछली मछली कित्ता पानी।
बेसब्री मे आखिर उसने ,
फिर से यह आवाज लगाई।
थोड़ी हलचल हुई लहर मे,
एक बूढ़ी मछली बाहर आई।
बची-खुची उर्जा अर्जित कर,
थोड़ा हिली और वह डोली।
टूट रहे स्वर में,साहस कर,
बूढ़ी मछली फिर यूँ बोली।
यहां नही कोई मछली अब,
किसे पुकार रही हो रानी।
कैसे तुम्हे बताऊं अब मैं,
बित्ता पानी बित्ता पानी।
उद्योगों से निकला कचरा,
कारों का जहरीला तेल।
गन्दे नालों से हो आता,
दुनिया का सारा मल मैल।
इन सबसे जल हुआ प्रदूषित,
कब तक पी सकते थे हम।
इधर प्रदूषण उधर मछेरे,
कब तक जी सकते थे हम।
सूख गए सब ताल तलैये,
जिनमे मैं क्रीड़ा करती थी।
अपने पिय के संग संग मैं,
जहां प्रसव पीड़ा करती थी।
मछुआरों ने ऐसे ऐसे,
लघु छिद्रों के जाल बिछाये।
चार दिनों के छौने मेरे,
उन जालों के गाल समाये।
छोटे छोटे दिल के टुकड़े,
पकड़ ले गये वे हत्यारे।
बैठी बैठो नदी किनारे,
अब रानी तू किसे पुकारे।
हरे हो गये घाव याद के,
मछली सिसक सिसक रोती है,
अपनो के खोने की पीड़ा,
कितनी दर्द भरी होती है।
जाओ जाओ अपने घर तुम,
अब मत मुझे पुकारो रानी।
मेरी सांसे भी बुझने को, मत पूछो  कि कित्ता पानी।
कित्ता पानी कित्ता पानी।

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