Monday, March 26, 2018

बुजुर्ग का खत - नयी पीढ़ी के नाम
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मुझको थोड़ा प्यार दे दो।

जीवन के सभी अनमोल लम्हों को,
निछावर कर गया मैं नौनिहालो पर,
हँसते हुए , रोते हुए, मै जी गया,
लालों की खुशहाली के ख्यालों पर।

उम्र के आवे मे अपने को पका कर,
तुम्हारे आज को हमने सजाया है।
सूरज की चांदनी मे तपते हुये भी,
सुनहरे विश्व को हमने रचाया है।

बूढ़ा  हूं जर्जर हूं उम्र से लाचार हूं मैं,
मेरे बच्चो
तुम्हारे पल पल का इतिहास हूं मैं।
प्यार का भूखा हूं, बस थोड़ा सा प्यार दे दो,
तुम्हारा पिता हूं, पितामह हूं,
शुभ हूं आशीर्वाद हूँ मैं।

आओ लिपट जाओ गले से,
बाँहों का गलहार दे दो।
थोड़ा मुझको प्यार दे दो।

तुम्हारी खिलखिलाती हँसी ही,
मेरी जिंदगी का एक मकसद थी,
स्वर्ग को लाकर तुम्हारे सामने रख दूं ,
हमेशा ही यही, बस एक हसरत थी।


तुम्हारा हर सुख, हर दुख,
कभी मेरा हुआ करता था।
हर छण हर पल तुम्हारे पास था मैं।

मुझे कुछ भी न चाहिए, पूर्ण हूॅ, परिपूर्ण हूं मैं।
हर तरह से तृप्त हूं, सम्पूर्ण हूं मैं।
प्यार की अतृप्त प्यास बाकी बस,
अपने प्यार को चुम्बन बनाकर,
बस यही उपहार दे दो।
मुझको थोड़ा प्यार दे दो।

जब से गये परदेश तुम ,
तुम्हारी मां बस रोती रहती है।
ढूंढ ढूंढ कर तेरी चीज़े ,
उन्हे सॅजोती रहती है ।

चिन्ता तेरे सेहत की बस,
उसे सताती रहती है।
घर आया, कुछ खाया कि नही,
यह दिन भर रटती रहती है।

डगमग होते पैर, कांपते हाथ,
न जाने कितने दिन चल पायेंगे।
बिना तुम्हारे हम दोनों ही,
अधिक नही जी पायेंगे।

बेटे तू अब लौट के आ जा,
घर की रोटी अच्छी है।
अपने घर परिवार की खुशिया,
कम ही सही पर सच्ची हैं।

जीतकर सारा जहां,
जब लौटकर तुम आओगे।
कहीं देर न हो जाये,
फिर हमसे नहीं  मिल पाओगे।
आ जाओ , आकर ,
लिपट जाओ गले से,
बाहों का गलहार दे दो।
हमको थोड़ा प्यार दे दो।

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