Friday, March 23, 2018

: गांव की जीविका
-----------------------

चुनुवा की महतारी,
पाथ रही कंडा।
ठाढे रोये चुनुवा ,
भूख से अन्धा।
बैरी यह पेट ,
कितना सताये।
दूसरे का गोबर चौका,
सब कुछ करवाये।
भा गोबर पथियावत ,
भिनसार से सँझौका।
गांव की गरीबी का,
यही है जियौका।

No comments: