: गांव की जीविका
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चुनुवा की महतारी,
पाथ रही कंडा।
ठाढे रोये चुनुवा ,
भूख से अन्धा।
बैरी यह पेट ,
कितना सताये।
दूसरे का गोबर चौका,
सब कुछ करवाये।
भा गोबर पथियावत ,
भिनसार से सँझौका।
गांव की गरीबी का,
यही है जियौका।
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