सच
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चबूतरे पर रखे नानाकार पत्थर,
बीच मे त्रिशूल।
कितने ही लोग आते,
चढ़ाते माला फूल।
लोग आते,
प्रश्नचिन्ह लगी , अपनी आशाओं को,
इनके हवाले कर जाते।
मैंने देखा है लोगो को,
यह क्रिया दोहराते तिहराते।
एक दिन पास आकर देखता हूं,
पत्थरों के आसपास पास बिखरे पड़े हैं -
सूखे विल्व पत्र ,धतूर।
टूटी फूटी चूड़ियाँ,
अक्षत , सिन्दूर।
और पीपल के पेड़ में -
थोड़ी ही दूर।
लटकी हैं छोटी छोटी पुटलियां , पुटके।
नींबू और मिर्च के,
टोने-टोटके ।
सोचता हूॅ - सच क्या है?
क्या यही है दुनिया की रचना करनेवाला?
उसको चलाने वाला?
उसका कर्ता धर्ता,
सबका दुख हर्ता?
क्या ऐसी ही भाषायें समझता है वह?
क्या इतना गया गुजरा है वह?
मैं बैठा अपनी उलझनों का समाधान खोज रहा हूं।
और-
बगल मे बैठा मन्दिर का पुजारी,
चढ़ावे के पैसे गिन रहा है।
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चबूतरे पर रखे नानाकार पत्थर,
बीच मे त्रिशूल।
कितने ही लोग आते,
चढ़ाते माला फूल।
लोग आते,
प्रश्नचिन्ह लगी , अपनी आशाओं को,
इनके हवाले कर जाते।
मैंने देखा है लोगो को,
यह क्रिया दोहराते तिहराते।
एक दिन पास आकर देखता हूं,
पत्थरों के आसपास पास बिखरे पड़े हैं -
सूखे विल्व पत्र ,धतूर।
टूटी फूटी चूड़ियाँ,
अक्षत , सिन्दूर।
और पीपल के पेड़ में -
थोड़ी ही दूर।
लटकी हैं छोटी छोटी पुटलियां , पुटके।
नींबू और मिर्च के,
टोने-टोटके ।
सोचता हूॅ - सच क्या है?
क्या यही है दुनिया की रचना करनेवाला?
उसको चलाने वाला?
उसका कर्ता धर्ता,
सबका दुख हर्ता?
क्या ऐसी ही भाषायें समझता है वह?
क्या इतना गया गुजरा है वह?
मैं बैठा अपनी उलझनों का समाधान खोज रहा हूं।
और-
बगल मे बैठा मन्दिर का पुजारी,
चढ़ावे के पैसे गिन रहा है।
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