Monday, March 26, 2018

छू मन्तर सपना
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कल रात  जब मै,
बिस्तर पर लेटा।
बिना ओर छोर का,
अजीब सपना देखा।

देखा एक बुढ़िया बेहाल,
फटे चीथडों में लिपटी है।
एक पोटली धरोहर सी,
उसके हाथों मे लटकी है।

मुझे देखते ही वह,
याचक की मुद्रा बनाती है।
तरस करने को कहती,
अपनी दुर्दशा दर्शाती है।

बोली एक दिन मैं भी,
बड़ी ऐश्वर्य वान थी।
मानित सम्मानित थी,
सुन्दर धनवान थी।

गौरवशाली इतिहास के,
किस्से वह सुनाती है।
पोटली से अतीत के,
सब साक्ष ला दिखाती है।

ऐश्वर्य के वैभव के,
सब चित्र दर्शाती है।
अपनों ने ही लूट लिया,
कैसे वह बताती है।

उसके दर्द सुनकर ,
मेरा मन पसीज गया।
छुब्ध दुखी मन  मेरा,
उसके अपनों पर खीज गया।

इसके पहले कि मैं ,
उसको कुछ थमा पाता।
उसके दुखी मन पर,
कुछ मरहम लगा पाता।

वहां छू मन्तर जादुई,
एक बिजली सी चमक गई।
और
ठठरी बुढ़िया अचानक ही,
भारत मां के नक्शे मे बदल गई।

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