किसान- गीता
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ग्राम देवता , हरि ओम तत्सत।
अन्न देवता , हरि ओम तत्सत।
भरता सबका पेट, भले ही,
उसका अपना खाली हो।
करता जग जीवन को सिंचित,
जैसे कोई माली हो।
जाड़ा, पाला, सूखा सहता,
जीवन-धारा बनी रहे,
किस मिट्टी का बना,न जाने,
कितने कितने कष्ट सहे।
वस्त्रहीन तन, आशहीन मन,
नंगे पैर , गला सूखा है,
सबका पेट अन्न से भरकर,
ग्राम देव खुद ही भूखा है।
दुनिया के रंगों से अविचल,
जाता सीधे अपने पथ।
ग्राम देवता हरि ओम तत्सत।
कर्म योग का असली योगी,
हलधर गीता जीता है।
"सुखदुखे समे कृत्वा",
चरणामृत सा पीता है।
मृत बीजों को , करे प्राणमय,
प्यार सींचकर उन्हे बढ़ाता।
फल फूलों से परिपूरित कर,
सारे जग की भूख मिटाता।
बीजों से जीवन अंकुरता,
जीवन पुनः बीज बन जाता।
शाश्वत आत्मा, तन क्षणभंगुर,
सबकी समझ सहज कर जाता।
महावृष्टि या अनावृष्टि से,
जब उसका सब कुछ खो जाता है।
"कर्मण्येवाधिकारस्ते ",
वह पुन: बीज बोकर आता है।
यह मुरलीधर या हलधर किसान,
मै भ्रम मे हूॅ, कि क्या है सच।
ग्राम देवता हरि ओम तत्सत।
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