Monday, March 26, 2018

अदने की मां
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लोग आते ,
समझाते।

मै रोता था, बिलखता था,
माँ के बिना लाचार बेजान।
जन्म और मृत्यु के रहस्यों से अनजान।
मैं मां से मिलने को आकुल था,
मन व्याकुल था।
मेरी माँ घर के ही एक गव्हर कक्ष मे,
मेरी बहन को जन्म देने गयी थी।

लोग आते , समझाते।
रो मत बेटा,
जल्दी ही आ जायेगी माॅ।
तेरे लिए खिलौना लेने गयी है तेरी माँ।

मैं रोता रहता, बिलखता रहता।
लेकिन लौटकर नही आयी मेरी माॅ।
दिनों महीनों सालों-साल।
मैं रोता रहता, बिलखता रहता।
लोग आते समझाते।
माॅ भगवान् के घर गयी है,
जल्दी ही आयेगी।
तुम्हारे लिए ढेर सारे खिलौने,
और मिठाइयां लायेगी।
अनवरत प्रतीक्षा मे आँखें पथरा गईं,
पर मेरी माॅ लौटकर नही आयी।

घर के सामने के चबूतरे पर,
रखे दो गोल मटोल पत्थर।
जिन्हे  लोग पूजते और कहते,
ये है  विष्णु और शंकर।
हमारे भगवान् हैं।
सृष्टि के बनाने वाले,
बहुत शक्तिशाली बलवान हैं।
कुछ भी कर सकने मे सामर्थ्य वान हैं।
जब सब चले जाते,
सुनसान हो जाता,
मैं चुपके से जाता, सामर्थ्य वान भगवान् के पास।
लगाकर आश।
सिर झुकाता, पैर पड़ता,
मिन्नतें करता, गिड़गिड़ाता,
कि वह जल्दी मेरी माॅ को वापस भेज दे,
या
बुला ले, मुझको माॅ के पास।

लोग आते , समझाते,
कि माॅ बन गई है एक सितारा,
अच्छे लोगों को ईश्वर पुरस्कार देता है,
और बना देता है आकाश का चमचमाता सितारा।
रात रात भर , मैं आँगन मे लेटा,
टिमटिमाते सितारों को निहारता रहता,
तारों की अनगिनत भीड़ मे खोजता रहता,
अनवरत , अपलक,
लेकिन माॅ कहीं ढूंढे नही मिलती।
मिलती भी कैसे,
मेरी मां मर गयी थी।
धाई पूसा के  हाथों।
जो घर के हॅसिया खुरपी और चिमटे से ही बच्चे का जन्म करा देती थी।
या
गांव के नीम हकीम गंगा पंडित के हाथों,
जिनके पास हर रोग की बस एक दवा थी संजीवनी गोली।
या
उस लाचार व्यवस्था के हाथों,

लेकिन मेरी माॅ तो मर गयी।

आज भी, दसियों सालों बाद भी,
बदला नही कुछ भी।
वही गोल मटोल विष्णु और शंकर।
वही झुके सिर ,अपनी विपदाओं के खोजते उत्तर।
और-
असमर्थ सामर्थ्य वान के मूक उत्तर।

मुझे अहसास होता है,
आज भी,
रोता बिलखता खड़ा हूॅ मैं प्रसूति घर के बाहर ।
और -
अन्दर मर रही है मेरी माॅ।

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