चीरहरण अब भी जारी है
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द्यूत जीतकर जो भी आया,
उसने इसे पदस्थ किया।
चीर खींचकर उसने इसको,
साधिकार निर्वस्त्र किया।
बस एक खिलौना है यह,
जो जीते उस पर खेले।
अपनी सम्पत्ति समझकर,
जो चाहे उससे ले ले ।
चले गये कौरव सदियो से,
चीरहरण अब भी जारी है।
प्रजातंत्र बनकर भारत मे,
फिर से द्रौपदी अवतारी है।
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द्यूत जीतकर जो भी आया,
उसने इसे पदस्थ किया।
चीर खींचकर उसने इसको,
साधिकार निर्वस्त्र किया।
बस एक खिलौना है यह,
जो जीते उस पर खेले।
अपनी सम्पत्ति समझकर,
जो चाहे उससे ले ले ।
चले गये कौरव सदियो से,
चीरहरण अब भी जारी है।
प्रजातंत्र बनकर भारत मे,
फिर से द्रौपदी अवतारी है।
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